डॉ. नर्मदेश्वर प्रसाद

कार्यकारी संपादक,

निदेशक,
परी ट्रेनिंग इन्सटीट्यूट

हाल में संयुक्त राष्ट्र ने जैव विविधता के नष्ट होने पर एक रिपोर्ट प्रकाशित किया है जिसके मुताबिक वैश्विक स्तर पर 10 लाख प्रजातियांं पर विलुप्ति का खतरा मंडरा रहा है और इनमें से कई पर यह खतरा विगत एक दशक में पैदा हुआ है। रिपोर्ट यह भी कहती है कि आज की तारीख में में 75 प्रतिशत भू-पर्यावरण एवं 66 प्रतिशत समुद्री पर्यावरण मानव गतिविधियों से गंभीर रूप से प्रभावित हुआ है। रिपोर्ट की बातें चौंकाने वाली बिल्कुल नहीं हैं क्योंकि विगत कई वर्षों से जैव विविधता नाश के बारें में विभिन्न एजेंसियों से रिपोर्ट आती रही हैं, हमें आगाह करती रही हैं और फिर परिणाम वही ढ़ाक के तीन पात। वर्ष 1962 में ही राशेल कार्शन ने अपनी पुस्तक ‘साइलेंट स्प्रिंग’ में मानव गतिविधियों से पर्यावरण और मानव पर नकारात्मक प्रभाव के प्रति सावधान किया था और कहा था कि ‘प्रकृति में अकेले किसी का अस्तित्व नहीं रहता’। दूसरे शब्दों में कहें तो पर्यावरण एवं जैव प्रजातियों को नाश कर मानव खुद भी अपने अस्तित्व की परिकल्पना नहीं कर सकता। हालांकि अर्थ ओवरशूट दिवस, जैव विविधता दिवस, पृथ्वी दिवस इत्यादि के माध्यम से लोगों में जागरूकता फैलाने का वर्ष में एक बार प्रयास जरूर किया जाता है परंतु मानव गतिविधियां ‘स्वहित’ से परे सोचने के लिए तैयार तक नहीं है। मार्च 2018 में असम के सिवसागर जिला में 36 हिमालयन गिद्धों की जहर से मौत इसका छोटा सा उदाहरण है। स्थानीय लोगों के अनुसार इन गिद्धों को पकड़ने के लिए बकरी के मांस में जहर मिला दिया गया था। वैसे पहले भी डाइक्लोफेनाक के कारण भारत में गिद्धों की संख्या कम होती रही है, साथ ही इस तरह की गतिविधियों का शिकार होने वाला गिद्ध ही एकमात्र प्रजाति नहीं है, और ही यह परिघटना केवल भारत तक ही सीमित नहीं है। स्थिति इतनी विकट हो गई है कि ब्रिटेन एवं आयरलैंड को जलवायु एवं जैव विविधता आपात की घोषणा करनी पड़ी है। ऐसे में यदि आज ‘सिक्स्थ मास एक्सटिंशन’ और ‘एंथ्रोपोसीन’ नामक एक नए भूवैज्ञानिक युग की बात की जा रही है तो आश्चर्यजनक बिल्कुल नहीं है। यदि प्रजातियों के विलुप्त होने की दर इसी दर से जारी रहती है तो वह समय दूर नहीं है जब प्राकृतिक वातावरण में दिखने वाले जानवर शहरों के जैविक उद्यानों में सीमटकर रह जाए। 
भूगोल और आप के इस अंक में भी आलेख व समसामयिकता के दृष्टिकोण से जैव विविधता के कुछ पहलुओं को शामिल किया गया है। इसके अतिरिक्त हाल के वर्षों में चर्चा में रहे विभिन्न एक्ट व विधेयकों पर विशेष सामग्री प्रकाशित की गई है। आशा है ‘भूगोल और आप’ का मौजूदा अंक आपको पसंद आएगा।